राजनांदगांव. देश के शीर्ष उत्तर में माँ भारती के मुकुट-सम स्थित हिमालय पर्वत माला की अत्यंत महत्वा स्थिति का परम प्रतीक हिमालय दिवस के परिप्रेक्ष्य में शास.कमला देवी राठी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के भूगोल विभाग द्वारा संस्था प्राचार्य डॉ. आलोक मिश्रा के प्रमुख संरक्षण में विशेष व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने मुख्य वक्ता के रूप में विषयक छात्राओं को बताया कि विश्व की सबसे बड़ी एवं ऊंची विशालतम पर्वतमाला हिमालय नवीन मोड़दार पर्वतक्रम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी भौगोलिक अवस्थिति समग्र देश-धरती की स्थिति को तुलनात्मक को दृष्टि से भौतिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध कर अखिल विश्व में हमारे देश को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बना देेती है। आगे डॉ. द्विवेदी ने हिमालय पर्वतक्रम की विशेष स्थित को संपूर्ण देश-प्रदेश-क्षेत्र के लिए विशिष्ट महता को स्पष्ट करते हुए कहा कि जलवायु नियंत्रक की मुख्य भूमिका अदा करने वाला हिमालय पर्वत साईबेरिया से आने वाली अत्यंत शीत एवं शुष्क पवनों से हम सभी की रक्षा करने के साथ-साथ मानसूनी हवाओं को रोककर विस्तृत क्षेत्र में वर्षा कराता है। अपनी ऊंची-ऊंची चोटियों में वर्षभर हिमांच्छादन से आद्रता बढ़ाकर अनेक सदावाहिनी नदियों के उद्गम का स्रोत बना रहता है। इसके भव्य उच्च ढालों एवं घाटियों पर अनुकूल जलवायु होने से सदाबहारी, शंकुधारी, सघन-गहन वन वनस्पित्ति का विस्तार है जिससे अत्यधिक उपयोगी वन, संपदा, फल-फूल, औषधियाँ, जड़ी-बूटी, काष्ठ और कच्चा माल प्राप्त होता ही है तथा प्राकृतिक सौदर्य से ओतप्रोत वादियाँ, सुरम्य पर्र्यटन के केन्द्र बनकर वर्षभर हजारों, लाखों सैलानियों को सहज रूप से आकर्षित करते है और देश के मुख्य पर्यटन उद्योग केन्द्र बनकर आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि के आधार बने हुए है। उल्लेखनीय है कि ‘देवात्मा’ के विशेषण नाम से प्रसिद्ध हिमालय हमारी अतीव गौरवशाली सनातन संस्कृति, पवित्र-आध्यात्म, परंपराओं की सदा-सर्वदा से परमपुण्य कार्य-स्थली रहा है। चूना-पत्थर, कोयला, पेट्रोलियम, तांबा, शीशा, स्लेट आदि प्राकृतिक खनिज संसाधनों का वृहद भंडार हिमालय देश-धरती के लिए वृहद पारिस्थितिक संतुलित माना जाता है। वर्तमान समय में चतुर्दिक बढ़ते दूषण-प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण के कारण यहां प्राकृतिक आपदाएं निरंतर बढ़ती जा रही है, जिससे संपूर्ण हिमालय क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं का केन्द्र बनता जा रहा है, जो सभी के लिए चिंतनीय है। हिमालय दिवस का मूल संदेश है कि देश-धरती का प्रत्येक जन-जन सर्वजन इसकी संरक्षा और इसकी प्राकृतिक विशिष्टताओं के संवर्धन के लिए संकल्पित हो तथा मन-प्राण से इसके लिए महत्वपूर्ण पहल भी करें। यह प्रमाणित तथ्य है कि हिमालय का पारिस्थितिक संतुलन संपूर्ण धरती पर मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है। हिमालय है तो मानव है और उसका यह संसार भी है।
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